इंदिरा गांधी कहती थीं साइकिल वाली बाई, शाहरुख खान ने नाम दिया था ‘इंदौर की दादी’

इंदिरा गांधी कहती थीं साइकिल वाली बाई, शाहरुख खान ने नाम दिया था ‘इंदौर की दादी’


इंदौर। शहर के चौराहों पर खाकी वर्दी पहनकर, हाथ में डंडा लिए खड़ी रहने वाली ट्रैफिक वाॅर्डन निर्मला पाठक नहीं रहीं। 95 वर्षीय पाठक ने शनिवार को अपने घर में ही अंतिम सांस ली। वे लंबे समय से बीमार थीं। 30 सालों तक शहर के ट्रैफिक को संभालने वाली पाठक को शाहरुख खान ने ‘इंदौर की दादी’ नाम दिया था। इंदौर पुलिस में उन्हें ‘मदर ट्रैफिक वाॅर्डन’ के नाम से जाना जाता था। निर्मला पाठक ने जिस भी चौराहे पर ड्यूटी की, उस पर किसी को ट्रैफिक नियम नहीं तोड़ने दिया। कोई राॅन्ग साइड से आ जाता तो वे डंडा फटकारकर उसे लौटा देतीं। दादी मुंबई में साइकिल चलाती थीं। इसके चलते 1962 में इंदिरा गांधी ने उन्हें वहां साइकिल वाली बाई का नाम दिया था। उनके निधन पर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ट्वीट किया- ‘इंदौर की सड़कों पर वर्षों तक यातायात सुधार में सेवाएं देने वाली बुजुर्ग महिला समाजसेवी निर्मला पाठक के दु:खद निधन का समाचार मिला। ईश्वर उन्हें श्रीचरणों में स्थान दे।’



पाठक को शहरवासियों ने 90 साल की उम्र में भी सड़क पर ट्रैफिक संभालते देखा है। रिटायर्ड एसपी और ट्रैफिक एक्सर्ट आरएस राणावत बताते हैं कि निर्मला दीदी का हमें छोड़कर जाना काफी दु:खद है। मैं वर्ष 1996 में ट्रैफिक डीएसपी था, तब ये मुझसे मिली थीं। मुंबई में बतौर ट्रैफिक वाॅर्डन रहने की जानकारी दी तो मैंने इंदौर ट्रैफिक के लिए काम करने का निवेदन किया। अगले ही दिन ये हमारे साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर सड़कों पर डंडा लिए ड्यूटी करने आ गईं। इनके जज्बे को देख युवाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए कि न तो कभी उन्होंने खुद ट्रैफिक नियम तोड़ा ना किसी को ड्यूटी पॉइंट पर अपने सामने तोड़ने दिया। पुलिस के साथ जुलूस, रैली, त्योहारों में हमेशा बेझिझक ट्रैफिक के लिए ड्यूटी की। हमने उन्हें 90 साल तक की उम्र में भी सड़क पर देखा है।



ऐसा था मुंबई से इंदौर का सफर
निर्मलाजी वर्ष 1963 में मुंबई में ट्रैफिक वाॅर्डन बनी थी। 90 के दशक में वे इंदौर आ गईं और यहां भी ट्रैफिक वाॅर्डन के तौर पर सेवा देने लगीं। उन्होंने आज तक किसी को डंडा नहीं मारा, लेकिन डंडे से कइयों को डराया और ट्रैफिक नियमों का पालन करवाया। उन्हें अब तक कई सम्मान भी मिल चुके हैं। इंदौर के लोधी मोहल्ला में जन्मीं निर्मलाजी दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ भी रही हैं। बचपन के कुछ दिन इंदौर में बिताने के बाद वे समाजसेवा का लक्ष्य लेकर मुंबई चली गई थीं। मुंबई में वे साइकिल चलाती थीं। इसी के चलते 1962 में इंदिरा गांधी ने उन्हें वहां साइकिल वाली बाई का नाम दिया। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मौत के बाद उन्होंने समाजसेवा के लिए पुलिस से हाथ मिलाया और ट्रैफिक वाॅर्डन बनकर सेवाएं देने लगी।



आखिरी सांस तक ड्यूटी करुंगी
परिजन बताते हैं ट्रैफिक वाॅर्डन बनने के बाद पुलिस के अधिकारियों ने उन्हें एक अलग से वर्दी पहनने का सम्मान दिया था। इस वर्दी को उन्होंने हमेशा जान से ज्यादा चाहा। वे कहती थीं कि मैं आखिरी सांस तक ड्यूटी करना चाहती हूं। करीब 6 माह पहले कलेक्टर लोकेश जाटव भी उनके घर पर मिलने पहुंचे थे। उन्होंने सिर में वर्दी की टोपी पहनकर उन्हें बेड पर लेटे-लेटे सैल्यूट किया था।



भाई के हाथ से पानी पिया और तोड़ दिया दम
निर्मलाजी के भाई गजानंद निमगांवकर ने बताया कि शनिवार सुबह से उनकी तबीयत ठीक नहीं थी। सुबह 12 बजे मेरे हाथ से पानी पिया। फिर आंखें ऊपर होने लगी तो मैंने तत्काल डॉक्टर को बुलाया। लेकिन उन्होंने चेक किया तो वे दम तोड़ चुकी थी। शाम को बेटा दिल्ली से साढ़े पांच बजे इंदौर आया तो उसके बाद मालवा मिल पर उनका अंतिम संस्कार हुआ। अंतिम यात्रा में ट्रैफिक डीएसपी उमाकांत चौधरी, नगर सुरक्षा समिति के अमरजीत सिंह सूदन सहित कई पुलिस के आला अधिकारी व उनके साथ काम करने वाले उपस्थित थे।


इसलिए याद करेंगे इंदौर के लोग दादी को



  • ट्रैफिक वाॅर्डन बनने के बाद कई साल नि:शुल्क ट्रैफिक सेवाएं दी।

  • जिस चौराहे पर ड्यूटी की उस पर किसी को ट्रैफिक नियम नहीं तोड़ने दिया।

  • अफसर जहां भेजते थे या तो पैदल या फिर रिक्शा वालों को बेटा बोलकर लिफ्ट लेकर ड्यूटी करने पहुंचती थी ।

  • बीमार होने के बाद भी बैठते-उठते नहीं बनता था लेकिन फिर भी रोज नहा धोकर वर्दी पहनती थी।

  • 90 की उम्र में भी चौराहों पर ड्यूटी की। पीपल्याहाना पर ट्रक चालकों को डंडे की धमक से लाइन से लगवाती थी और जाम नहीं होने देती थी।

  • चौराहों पर स्कूली बच्चों को जेब्रा क्रॉसिंग हाथ पकड़कर करवाती थी।